Ahoi Ashtami 2021: इस खास योग में 28 अक्टूबर को मनायी जाएगी अहोई अष्टमी, माताएं करेंगी संतान की लंबी उम्र की कामना

हिंदू धर्म में महिलाएं संतान प्राप्ति और उनकी लंबी आयु के लिए अहोई अष्टमी व्रत रखती हैं। ये व्रत पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष करवा चौथ से चार दिन बाद यानि अनुसारकार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष ये व्रत (Ahoi Ashtami On 28th October) 28 अक्टूबर (वीरवार) को रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत का पालन करते हुए अहोई माता, भगवान शिव व माता पार्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना करती हैं। रात को तारों को अर्घ्य दे महिलाएं व्रत का पारण करती हैं। खास बात ये है कि इस साल 28 अक्टूबर को गुरु पुष्य अमृत योग बन रहा है।
क्यों खास है गुरु पुष्य अमृत योग
इस बार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की 28 अक्टूबर को गुरु पुष्य अमृत योग बन रहा है। जिससे इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्र हैं और उनमें पुष्य नक्षत्र का अपना खास महत्व है। जब यह नक्षत्र गुरुवार के दिन होता है तो इसे गुरुपुष्य योग कहा जाता है। इस नक्षत्र के स्वामी गुरु बृहस्पति देव हैं। इस योग को बेहद दुर्लभ और श्रेष्ठतम योगों में से एक माना गया है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष ये योग 28 अक्टूबर से प्रात : 9 बजकर 41 मिनट पर शुरू होकर 29 अक्टूबर सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। पंचांग के अनुसार ये वीरवार और पुष्य नक्षत्र में बनने वाला ये योग अपने साथ कई शुभ संयोग भी ला रहा है।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई व्रत करने वाली माताएं प्रात: उठकर स्नान करने के बाद पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु और सुखमय जीवन हेतु कामना करती हैं. व्रती महिलाएं माता अहोई से प्रार्थना करती हैं कि हे माता मैं अपनी संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृद्धि के लिए व्रत कर रही हूं. इस व्रत को पूरा करने की आप मुझे शक्ति दें. यह कहकर व्रत का संकल्प लें, एक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य और सुख प्राप्त होता है. इस दिन माता पार्वती की पूजा भी की जाती है क्योंकि माता पार्वती भी संतान की रक्षा करने वाली माता कही गई हैं.
उपवास करने वाली स्त्रियों को व्रत के दिन क्रोध करने से बचना चाहिए और उपवास के दिन मन में बुरा विचार लाने से व्रत के पुण्य फलों में कमी होती है. इसके साथ ही व्रत वाले दिन, दिन की अवधि में सोना नहीं चाहिए. अहोई माता की पूजा करने के लिए अहोई माता का चित्र गेरुए रंग से बनाया जाता है. इस चित्र में माता, सेह और उनके सात पुत्रों को अंकित किया जाता है. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है.
सायंकाल की पूजा करने के बाद अहोई माता की कथा का श्रवण किया जाता है. इसके पश्चात सास-ससुर और घर में बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है. तारे निकलने पर इस व्रत का समापन किया जाता है. तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है और तारों की आरती उतारी जाती है. इसके पश्चात संतान से जल ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है.
अहोई व्रत कथा
अहोई अष्टमी की व्रत कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार रहता था. उसके सात लड़के थे. दीपावली आने में अब केवल सात दिन ही शेष थे. इसलिए घर में साफ-सफाई का काम चल रहा था. इसी कार्य के लिए साहूकार की पत्नी घर की लीपा-पोती के लिए नदी के पास की खादान से मिट्टी लेने गई थी. वह खदान में जिस जगह मिट्टी खोद रही थी, वहीं पर एक सेह की मांद थी. स्त्री की कुदाल लगने से सेह के एक बच्चे की मृत्यु हो गई.
यह देख साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ. शोकाकुल वह अपने घर लौट आई. लेकिन सेह के श्राप से कुछ दिन बाद उसके बड़े बेटे का निधन हो गया और फिर कुछ दिन बाद दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई. साहूकार के परिवार में बेटों की मौत का सिलसिला यहीं नहीं रुका. एक वर्ष के भीतर ही उनके सातों संतान मृत्यु को प्राप्त हो गए. अपनी सभी संतानों की मृत्यु के कारण वह स्त्री अत्यंत दु:खी रहने लगी. एक दिन उसने रोते हुए अपनी दु:ख भरी कथा अपने आस-पड़ोस कि महिलाओं को बताई.
साहूकार की पत्नी ने बताया कि उसने जान-बूझकर पाप नहीं किया है. अनजाने में उससे सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी. जिसके बाद मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई. यह सुनकर पड़ोस की वृद्ध महिला ने उसे दिलासा दिया और कहा कि तुमने जो पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है. तुम माता अहोई अष्टमी के दिन माता भगवती की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना कर, क्षमा याचना करो, तुम्हारा कल्याण होगा. ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप समाप्त हो जाएगा.
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिला की बात मानकार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का व्रत कर माता अहोई की पूजा की, वह हर वर्ष नियमित रुप से ऐसा करने लगी, समय के साथ उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई, तभी से अहोई व्रत की परम्परा शुरू हो गई.
अहोई अष्टमी उद्यापन विधि
जिस स्त्री का पुत्र न हो अथवा उसके पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे उद्यापन अवश्य करना चाहिए. इसके लिए एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए. इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साड़ी, ब्लाउज एवं रुपये आदि रखकर श्रद्धापूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए. उसकी सास को चाहिए कि वस्त्रादि को अपने पास रखकर शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने आस-पड़ोस में वितरित कर दें. यदि कोई कन्या हो तो उसके यहां भेज दें.
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त
अहोई अष्टमी चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी को मनाई जानी चाहिए. इसलिए गुरुवार, 28 अक्टूबर को ही अहोई अष्टमी मनाई जाएगी.
अष्टमी तिथि आरंभ गुरुवार, 28 अक्टूबर, दोपहर 12 बजकर 49 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त शुक्रवार, 29 अक्टूबर, दोपहर 2 बजकर 9 मिनट पर
पूजा का शुभ समय- गुरुवार, 28 अक्टूबर को सायं 5:00 बजे से 6:45 बजे तक
तारों को देखने का समय- 28 अक्टूबर को शाम 5:00 बजे से 6 बजकर 45 मिनट तक
अहोई अष्टमी की रात चन्द्रोदय- 11:52 पर ही होगा