IAS Story: घर चलाने के लिए मां बेचती थी शराब, ऐसा रहा गांव की झोपड़ी से सरकारी बंगले तक का आईएएस का सफर

IAS Story: Mother used to sell liquor to run the house, this was the journey of IAS from village hut to government bungalow

IAS Success Story: हम अक्सर लोगों को कहते सुनते हैं कि बिना पैसे के आदमी अपने सपने पूरे नहीं कर सकता, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए पैसों की जरूरत नहीं होती है. डॉ. राजेंद्र भरूद ऐसे लोगों के लिए एक जीवंत उदाहरण हैं जो अपने सपनों को हासिल करने के लिए गरीबी से लड़ने की हिम्मत करने वालों की ताकत और दृढ़ संकल्प पर संदेह करते हैं.

उन्होंने एक बार कहा था, "गरीबी वह है जिसे हम जन्म से जानते हैं. यह गांव के हर व्यक्ति के भीतर इतनी गहराई से मौजूद है कि किसी को पता भी नहीं चलता कि वह गरीब है या अनपढ़. हर कोई अपने पास जो कुछ है, और प्रकृति के संसाधनों पर रहकर खुश है."

Air Fare: हवाई यात्रा हो सकता है सस्ता!, केंद्र सरकार ने किया ऐसा ऐलान, सुनकर खुशी से झूम उठे हवाई यात्री

आज हम आपको डॉ. राजेंद्र भारूद के बारे में बताएंगे, जो सपने देखने की हिम्मत करने वालों के लिए प्रेरणा हैं. डॉ राजेंद्र भरूद महाराष्ट्र के सकरी तालुका के समोदे गांव के रहने वाले हैं. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर राजेंद्र ने अपने गांव लौटने पर सबको चौंका दिया और इसकी वजह आपको हैरान कर देगी. घर वापस आने पर वे न केवल एक डॉक्टर थे बल्कि एक आईएएस अधिकारी भी थे.

डॉ राजेंद्र भरूद का जन्म 7 जनवरी 1988 को सामोदे गांव में हुआ था. उनके पिता की मृत्यु उनके जन्म से पहले ही हो चुकी थी. खराब आर्थिक स्थिति के कारण उनके परिवार के पास उनके पिता की एक भी तस्वीर नहीं थी. भरूद की मां जीवन यापन के लिए शराब बेचती थी और पूरा परिवार गन्ने के पत्तों से बनी एक छोटी सी झोंपड़ी में रहता था.

एक अखबार से बात करते हुए राजेंद्र भरुद ने कहा था कि मैं तीन साल की उम्र में भूख के कारण रोता था. शराब पीने वाले मेरी वजह से नाराज़ थे. उनमें से कुछ मुझे चुप कराने के लिए मेरे मुंह में शराब की बूंदें डाल देते थे. दूध की जगह मेरी दादी मुझे शराब पिलाती थीं ताकि भूख कुछ हद तक दूर हो जाए और मैं चुप हो जाता और इस सब की वजह से उन्हें शराब की लत लग गई. सर्दी-खांसी होने पर भी उसे दवा के रूप में शराब पिलाई जाती थी.

राजेंद्र ने कहा, वह अपने घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर वहीं पढ़ते थे. कभी-कभी जो लोग शराब पीने आते थे, वे उसे कुछ अतिरिक्त पैसे स्नैक्स लाने के लिए देते थे. जिससे उन्होंने कुछ किताबें खरीदीं. उन्होंने कठिन अध्ययन किया और कक्षा 10वीं की परीक्षा में 95 फीसदी नंबर हासिल किए और 12वीं कक्षा में 90 फीसदी नंबर लाए.

एमबीबीएस के अपने फाइलन ईयर में, उन्होंने यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा में बैठने का फैसला किया. यह चुनौतीपूर्ण था क्योंकि वह उस समय दो परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. इसके अलावा, वह एक इंटर्न थे. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह यूपीएससी के लिए उपस्थित हुए और अपने पहले प्रयास में ही परीक्षा पास कर ली. बेशक, उनकी मां को यूपीएससी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. जब वे एमबीबीएस पूरा करके वापस गए, तो उनकी मां को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि उनका बेटा अब सिविल ऑफिसर बन गया है.


राजेंद्र ने साल 2014 में एक मराठी पुस्तक "मी एक स्वप्न पाहिल" भी लिखी है. पुस्तक में, उन्होंने तीन बच्चों की परवरिश के लिए अपने संघर्ष, यात्रा और अपनी मां के बलिदान के बारे में बात की. राजेंद्र भरूद सिर्फ एक प्रेरणा ही नहीं बल्कि बहाने देने और अपनी किस्मत की आलोचना करने वालों के लिए एक मिसाल भी हैं. फिलहाल वह अपनी मां, पत्नी और बच्चों के साथ एक सरकारी बंगले में रहते हैं.

Share this story